Tuesday, 10 February 2015

बुलंदियो तक पहुंचना चाहता हु मै भी,पर गलत राहो से होकर जॉऊ ,इतनी जल्दी भी नही,आदते खराब नही, शौक ऊँचे है,वरना ख्वाबों की इतनी औकातनही कि हम देखे और पूरा न हो.......

जब कोई नहीं होता पास
तुम होते हो,
तुम्हीं में जिंदा हैं,
तुम्हीं ने पाला है।
आवारगी के सरताज-
हे मेरे शब्दों
मेरा संसार बनो,
घर-बार बनो
मेरा जिस्म मढ़ो,
मेरी रूह गढ़ो,
मेरे पंखों की रफ्तार बनो।
तुम ही फकत मेरे रहे हो सदा,
जो गूंजे धरा-गगन तक
बस वही हुंकार बनो।
जले जब मिट्टी देह की,
जो उठे हर एक रूह से
धुएं का वो गुबार बनो
मेरी आवाज सुनो...
अभिमान बनो....
निकलो कलम से मेरी
फिर अलहदा कोई कलाम बनो।
तुम्हीं हमदर्द और हमराज भी तुम...
आवाज भी तुम...साज भी तुम..
जो गूंजता है सुबह-शाम जेहन में
उसका शंखनाद करो।
अपने लिए गढ़ा बहुत,
गैरों के लिए भी शिल्पकार बनो....
वैराग तजो...आधार सधो,
बस आगाज नहीं...मेरा अंजाम बनो।
जो दबे हैं राख के नीचे,
उन शोलों की फुंकार बनो....
कब तलक होगा पानी-पानी ?
जो सुकून दे दहकती रूहों को "आवारा"
वही धधकता अंगार बनो....!!
अभिमान तजो...अंगीकार करो..
हे शब्दों मेरा आधार बनो !!
कुछ छोटे सपनो के बदले , बड़ी नींदका सौदा करने ,निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगरठहरेंगे !वही प्यास के अनगढ़ मोती ,वही धूप की सुर्खकहानी ,वही आंख में घुटकर मरती ,आंसू की खुद्दारजवानी ,हर मोहरे की मूक विवशता ,चौसर के खानेक्या जानेहार जीत तय करती है वे , आज कौन से घरठहरेंगे....!निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगरठहरेंगे !कुछ पलकों में बंद चांदनी ,कुछ होठों में कैदतराने ,मंजिल के गुमनाम भरोसे ,सपनो के लाचारबहाने ,जिनकी जिद के आगे सूरज, मोरपंख सेछाया मांगे ,उन के भी दुर्दम्य इरादे , वीणा के स्वर परठहरेंगे .निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगरठहरेंगे .....!!