Saturday, 23 January 2021

 लक्ष्य पर ध्यान हो तो देखो  मंजिल दूर नही। 

हम परेशान हो सकते है पर मजबूर नही।

नीव की ईंट का कहना है हम भी शामिल हैं। 

हम ही बलिदान हो ये तो कोई दस्तूर नही।

शान शौकत की चाह तो सभी रखते है "अमन"।  

वतन की आबरू से बढ़के कोई हूर नही।।

वतन की राह में हम जान भी देंगे "राजू"।

जंग मैदानों में होगी वही भरपूर नही।

हमने देखा है सगा अपना वतन लूटते हुए। 

जिंदगी यू ही गुजर जाए ये मंजूर नही।।  


रचना

डॉ अनिल कुमार शाह@कॉपीराइट

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