संविधान से जीना सीखो। संविधान से मरना सीखो।।
teri aankho ke kor
Wednesday, 19 February 2025
Monday, 1 July 2024
रूठ जाऊं तो मुझको मनाया करो ,
नाम लेकर मेरा गुनगुनाया करो ,जान लो ये मुहब्बत का दस्तूर हे ,
मुझको सीने से अपने लगाया करो ,
टोकती हे कभी , मुझको मेरी नजर ,
देखना चाहती हे वो तेरा शहर ,
तेरी गलियाँ , वो बाजार , वो रास्ते ,
जिनमे रहता हे वो मेरा जाने जिगर ,
दूर हो तुम अगर पास मेरे नहीं ,
याद आकर के मुझको रुलाया करो ,
रूठ जाऊं तो मुझको मनाया करो ,
नाम लेकर मेरा गुनगुनाया करो ,
जान लो ये मुहब्बत का दस्तूर हे ,
मुझको सीने से अपने लगाया करो ,
दिल को दिल से लिपट करके मिलने तो दे ,
प्यार के फूल राहों में खिलने तो दे ,
हम मिले हे बड़ी मुश्किलों से सनम ,
प्यार में जिस्म दोनों पिघलने तो दे ,
दोनों बस जाए एक दूजे की रूह में ,
इस तरह मुझको खुद से मिलाया करो ,
रूठ जाऊं तो मुझको मनाया करो ,
नाम लेकर मेरा गुनगुनाया करो ,
जान लो ये मुहब्बत का दस्तूर हे ,
Saturday, 23 January 2021
लक्ष्य पर ध्यान हो तो देखो मंजिल दूर नही।
हम परेशान हो सकते है पर मजबूर नही।
नीव की ईंट का कहना है हम भी शामिल हैं।
हम ही बलिदान हो ये तो कोई दस्तूर नही।
शान शौकत की चाह तो सभी रखते है "अमन"।
वतन की आबरू से बढ़के कोई हूर नही।।
वतन की राह में हम जान भी देंगे "राजू"।
जंग मैदानों में होगी वही भरपूर नही।
हमने देखा है सगा अपना वतन लूटते हुए।
जिंदगी यू ही गुजर जाए ये मंजूर नही।।
रचना
डॉ अनिल कुमार शाह@कॉपीराइट
Message to the Nation
On
72th REPUBLIC DAY, 2021
आज से सात
दशक पहले, 26 जनवरी को, हमारा संविधान लागू हुआ था, तब से प्रतिवर्ष 26 जनवरी को
हम गणतन्त्र दिवस मनाते हैं। हमारे संविधान ने, हम सब को एक स्वाधीन लोकतंत्र
के नागरिक के रूप में कुछ अधिकार प्रदान किए हैं। संविधान के अंतर्गत ही, हम सब ने यह ज़िम्मेदारी भी
ली है कि हम न्याय, स्वतंत्रता, समानता तथा भाईचारे के मूलभूत लोकतान्त्रिक आदर्शों के प्रति सदैव
प्रतिबद्ध रहें। राष्ट्र के निरंतर विकास तथा परस्पर भाईचारे के लिए, यही सबसे उत्तम मार्ग है।गणतंत्र
दिवस हमारे संविधान का उत्सव है। आज के दिन, मैं संविधान के प्रमुख शिल्पी, बाबासाहब आंबेडकर के एक विचार
को आप सब के साथ साझा करना चाहूँगा। उन्होंने कहा था कि "अगर हम केवल ऊपरी तौर
पर ही नहीं, बल्कि वास्तव में भी, लोकतंत्र को बनाए रखना चाहते हैं, तो हमारा पहला काम यह
सुनिश्चित करना है कि अपने सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, अडिग निष्ठा के साथ, संवैधानिक उपायों का ही सहारा
लेना चाहिए।"
स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं
के सुलभ होने को प्रायः सुशासन की आधारशिला समझा जाता है। अब हम इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में प्रवेश कर चुके हैं। यह नए भारत
के निर्माण और भारतीयों की नई पीढ़ी के उदय का दशक होने जा रहा है। इस शताब्दी में
जन्मे युवा, बढ़-चढ़ कर, राष्ट्रीय विचार-प्रवाह में
अपनी भागीदारी निभा रहे हैं। समय बीतने के साथ, हमारे स्वाधीनता संग्राम के प्रत्यक्ष साक्षी रहे लोग हमसे धीरे-धीरे
बिछुड़ते जा रहे हैं, लेकिन हमारे स्वाधीनता
संग्राम की आस्थाएं निरंतर विद्यमान रहेंगी।टेक्नॉलॉजी में हुई प्रगति के कारण, आज के युवाओं को व्यापक जानकारी उपलब्ध है और उनमें आत्मविश्वास भी
अधिक है। हमारी अगली पीढ़ी हमारे देश के आधारभूत मूल्यों में गहरी आस्था रखती है।
हमारे युवाओं के लिए राष्ट्र सदैव सर्वोपरि रहता है। मुझे, इन युवाओं में, एक उभरते हुए नए भारत की झलक
दिखाई देती है।किसी भी उद्देश्य के लिए संघर्ष करने वाले लोगों, विशेष रूप से युवाओं को nknk ghjk flag
ejdke के मंत्र को सदैव याद रखना चाहिए, जो कि dks lnSo izsj.kk dk lzksr cuk jgsxkA
Tuesday, 10 February 2015
तुम होते हो,
तुम्हीं में जिंदा हैं,
तुम्हीं ने पाला है।
आवारगी के सरताज-
हे मेरे शब्दों
मेरा संसार बनो,
घर-बार बनो
मेरा जिस्म मढ़ो,
मेरी रूह गढ़ो,
मेरे पंखों की रफ्तार बनो।
तुम ही फकत मेरे रहे हो सदा,
जो गूंजे धरा-गगन तक
बस वही हुंकार बनो।
जले जब मिट्टी देह की,
जो उठे हर एक रूह से
धुएं का वो गुबार बनो
मेरी आवाज सुनो...
अभिमान बनो....
निकलो कलम से मेरी
फिर अलहदा कोई कलाम बनो।
तुम्हीं हमदर्द और हमराज भी तुम...
आवाज भी तुम...साज भी तुम..
जो गूंजता है सुबह-शाम जेहन में
उसका शंखनाद करो।
अपने लिए गढ़ा बहुत,
गैरों के लिए भी शिल्पकार बनो....
वैराग तजो...आधार सधो,
बस आगाज नहीं...मेरा अंजाम बनो।
जो दबे हैं राख के नीचे,
उन शोलों की फुंकार बनो....
कब तलक होगा पानी-पानी ?
जो सुकून दे दहकती रूहों को "आवारा"
वही धधकता अंगार बनो....!!
अभिमान तजो...अंगीकार करो..
हे शब्दों मेरा आधार बनो !!